Wednesday, July 23, 2008

सेतुसमुद्रम पर सरकार के बयांन से िववाद


सेतुसमुद्रम परियोजना के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दिए केन्द्र सरकार के बयान से नया विवाद खड़ा हो गया है.

सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील एफ़एस नरीमन ने कंबन रामायण और पद्म पुराण का हवाला देते कहा कि भगवान राम ने खु़द रामसेतु को नष्ट कर दिया था.

मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सेतुसमुद्रम परियोजना पर बुधवार को बहस की शुरू हुई.

नरीमन ने सरकार की ओर से तर्क देते हुए कहा कि लोगों का विश्वास है कि राम ने सेतु बनाया था.

लेकिन कंबन रामायण में कहा गया है कि राम ने उसे स्वंय तोड़ भी दिया था ताकि कोई भी लंका से इधर न आ सके.

नरीमन ने माना कि ये लोगों की आस्था का सवाल है, लेकिन उन्होंने कहा कि अब कोई सेतु नहीं तोड़ा जा रहा क्योंकि कोई रामसेतु है ही नहीं.

उनकी दलील थी कि यदि आप आस्था पर भरोसा कर रहे हैं तो आपको अन्य आस्थाओं का भी ध्यान रखना होगा.

इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रवक्ता राम माधव ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि सरकार हिंदुओं की भावनाओं से खेल रही है.

उनका कहना था कि इसके पहले सरकार ने एक हलफ़नामा देकर भगवान राम के अस्तित्व को ही नकार दिया था.

भाजपा के प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की.

एक टीवी चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा कि सरकार लाखों लोगों की भावनाओं से खेल रही है.

डीएमके का दबाव

दरअसल करुणानिधि की पार्टी डीएमके यानी द्रविड़ मुनेत्र कझगम इस परियोजना को आगे बढ़ाना चाहती है.

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सेतुसमुद्रम परियोजना का हिंदू संगठन विरोध कर रहे हैं

इसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को दो अहम निर्देश दिए थे.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि भारतीय पुरातात्विक विभाग (एएसआई) को यह जाँच करनी चाहिए कि क्या रामसेतु को 'प्राचीन स्मारक' घोषित किया जा सकता है?

और दूसरा यह कि केंद्र सरकार को इस परियोजना के लिए वैकल्पिक रास्ते या नए 'एलाइनमेंट' की तलाश करनी चाहिए.

दरअसल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट को दिए गए हलफ़नामे में कहा था कि 'राम-सेतु' के ऐतिहासिक और पुरातात्विक अवशेष होने के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं.

इसके बाद कई हिंदू संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया था और इस पर राजनीतिक हंगामा भी हुआ था.

क्या है सेतुसमुद्रम परियोजना?

सेतुसमुद्रम भारत और श्रीलंका के बीच तैयार होने वाली परियोजना है जिसके तहत वहाँ के उथले समुद्र को गहरा करके जहाज़ों के आने-जाने का रास्ता साफ़ करना है.

इसके तहत उस संरचना को भी तोड़ा जाना है जो हवाई चित्रों में पुल की तरह दिखाई देता है. हिंदू संगठनों का कहना है कि यह 'राम-सेतु' है जिसका ज़िक्र रामायण में है.

दरअसल भारत के पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक जाने के लिए एक जहाज़ को श्रीलंका के पीछे से चक्कर लगाकर जाना पड़ता है क्योंकि भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र काफ़ी उथला है.

जहाज़ों को इस यात्रा में तक़रीबन 424 समुद्री मील यानी क़रीब 780 किलोमीटर की अतिरिक्त यात्रा करनी पड़ती है. इसमें 30 घंटे ज़्यादा खर्च हो जाते हैं.

लेकिन सेतुसमुद्रम परियोजना को सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिल जाने के बाद क़रीब 89 किलोमीटर लंबे दो चैनल बनाए जाएँगे. ये दोनों चैनल एक चौड़ी नहर की तरह होंगे जिससे होकर बड़े-बड़े जहाज़ आ-जा सकेंगे.

एक चैनल उस एलाइनमेंट या रास्ते पर बनाया जाएगा जिसे 'रामसेतु' या एडम्स ब्रिज माना जाता है. जबकि दूसरा चैनल दक्षिण पूर्वी पामबान द्वीप के रास्ते पर पाक जलडमरू मध्य को गहरा करके बनाया जाएगा.

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